वो पढ़ाव
- thebookclubknc
- Apr 16
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करिश्मा मिश्रा, बी.ए. ऑनर्स पत्रकारिता

नंदना द्वारा संपादित
ज़िंदगी में पढ़ाव तो कई सारे है
सबकी अपनी एक जरूरत है ।
और अपनी अलग खूबसूरती है ,
पर दिल एक पढ़ाव की ओर हमेशा निहारता है ।
उस पढ़ाव पर वापस जाना चाहता हैं,
जहा न मंजिल की फिक्र थी ।
न किसी को पाने की ज़िद थी ,
बस थी हजारों कहानियां की दुनिया ।
छोटी चीजों में मिलती थी बड़ी खुशियां,
न रिश्तों की कोई कस्मकस थी ,
न किसी से जीतने की होड़ थी।
एक सुकू से भरा मां का आंचल था ,
और उसकी गोदी में ही सारा संसार था ।
जो मिल जाता, वही इनाम था ,
जो न मिल पाता वो बेकार था ।
जिम्मेदारियों का बोझ नहीं था ,
ख्वाइशों पर किसी का ज़ोर नहीं था।
अब याद आता है वो पढ़ाव ,
उस पढ़ाव से जुड़ी लाखो बाते।
काश कोई जरिया होता,
की फिर जीपते हम वो राते ।।

Nandana, absolutely loved the design!<3
Karishma, your poem is beautiful & feels like a walk down memory lane!<3