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वो पढ़ाव

करिश्मा मिश्रा, बी.ए. ऑनर्स पत्रकारिता

नंदना द्वारा संपादित



ज़िंदगी में पढ़ाव तो कई सारे है

सबकी अपनी एक जरूरत है ।

और अपनी अलग खूबसूरती है ,

 

पर दिल एक पढ़ाव की ओर हमेशा निहारता है ।

उस पढ़ाव पर वापस जाना चाहता हैं,

जहा न मंजिल की फिक्र थी ।

न किसी को पाने की ज़िद थी ,

बस थी हजारों कहानियां की दुनिया ।

छोटी चीजों में मिलती थी बड़ी खुशियां,

 

न रिश्तों की कोई कस्मकस थी ,

न किसी से जीतने की होड़ थी।

एक सुकू से भरा मां का आंचल था ,

और उसकी गोदी में ही सारा संसार था ।

जो मिल जाता, वही इनाम था ,

जो न मिल पाता वो बेकार था ।

जिम्मेदारियों का बोझ नहीं था ,

ख्वाइशों पर किसी का ज़ोर नहीं था।

 

अब याद आता है वो पढ़ाव ,

उस पढ़ाव से जुड़ी लाखो बाते।

काश कोई जरिया होता,

की फिर जीपते हम वो राते ।।



2 Comments

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Nandana, absolutely loved the design!<3

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Karishma, your poem is beautiful & feels like a walk down memory lane!<3

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