वो कोई खिलौना नहीं
- Karishma Mishra
- Feb 12
- 1 min read
~करिश्मा मिश्रा
तृतीय वर्ष, बी.ए. (ऑनर्स) पत्रकारिता

उसका जिस्म कोई खिलौना नहीं
जिससे जब मन किया खेल लिया
वो चादर है उसकी पवित्रता की
जिसमें समाज ने उसे है लपेट दिया
कद कपड़ो का कम हुआ
तो लोगों की सोच भी घट गई
जहां किसी मासूम की चीख सुनाई दी
वहीं उसके इरादों पर उँगली उठ गई
इंसाफ के समय अंधे कानून को भी
हरे कागज़ पर गॉंधी की तस्वीर दिख गई
गुहार करते हुए मॉं बाप की उम्मीदें भी
बिना किसी कार्रवाई के ही फॉंसी पर चढ़ गई
दिन ढल गए, साल गुजरे, सदियॉं बीत गई
कल द्रौपदी तो आज साक्षी एक कहानी बन गई
पर आज भी हो जब कहीं बलात्कार किसी का
तो बातें लड़की के चरित्र से शुरु और अंत होती
उसे फूल सा बनाकर कुचला है
उसे हमेशा बचाकर, लड़ने से रोका है
तुम लड़की हो थोड़ा आराम से
यह कहकर ही तो , उस शरीर को
अब जीवित निर्जीव बनाकर छोड़ा है!
Power packed💥
The design matches the poem , love it 💗
Gave me the chills! Love how you've put out the reality in such an unfiltered manner👏
Such a powerful piece!!Absolutely loved it Karishma💗
This was so hard-hitting!
You put the reality across in the most authentic & unfiltered way.I loved how you expressed your thoughts with so much clarity, Karishma.