इश्क़-ए-मेहताज
~ प्रज्ञा पाण्डेय
तृतीय वर्ष, बी.ए. (ऑनर्स) समाजशास्त्र
अभिकल्पना: रागिनी
तू मेरी हर सांस में बसता एक प्यारा सा नाम है,
मेरी निगाहों का एक अकेला काम है।
तुझे सोचकर ही तो मैं इस शाम में ढलती हूं,
मैं तेरे ख़्वाबों में ही तो अपना प्यार पिरोती हूं।
मेरे दर्द की सफेद कफ़न पर,
तेरा हर स्पर्श लाल गुलाब की पंखुड़ियों सा है;
इस जीवन की अनजान बस्ती में,
तू ग़ैर नहीं, ग़ैरों में अपना सा है।
काली घटा बरस जाने पर भी,
तू अंधेरी रातों में उजियारे का
बस एक सपना है;
जिस्म की आग से ऐतबार होकर भी,
इन इश्क़ की बेपनाह गलियों में,
मेरी रूह का गहना है।
तू बिन कुछ कहे, कितना कुछ कह जाता है,
मोहब्बत की नगमों को,
नज़रों से लिख जाता है।
तू कल भी उतना ही अपना होगा,
जितना आज है,
क्योंकि ये सांसों की लड़ी,
तेरे इश्क़ की मेहताज है।
Loved it ❤️
Loved it, Pragya! :)
Great work, Ragini!<3
Lovely poem ♥
Khoobsurat - the writing and the design 🫶🤌
So immersive, heart touching and beautiful poem and design❤️ 😍